वर्तमान समाज की यह सामाजिक व्याधि है, जिससे कोई खंड अछूता नहीं रह गया ।
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वर्तमान समाज की यह सामाजिक व्याधि है, जिससे कोई खंड अछूता नहीं रह गया ।
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हमें पता नहीं था कि असम के बाहर सारा भारत आज इस सामाजिक व्याधि के नीचे दबा हुआ कराह रहा है।
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दूसरा, क्या सामाजिक व्याधि का स्वरुप धारण करने वाली इस समस्या को महज क़ानून और न्याय-पध्यति की समस्या मान कर समाधान किया जा सकता है या नैतिक-मूल्यों की पुनर्स्थापित का जबरदस्त प्रयास करने की ज़रुरत आ पड़ी है.
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दिल्ली में दिसंबर २ ० १ २ में निर्भया का केस! और अब अप्रैल २ ० १ ३ में गुडिया का मामला | क्या अशिक्षा, अज्ञान, अतर्क से उपजा मनोविकार एक सामाजिक व्याधि का रूप धारण कर रहा है?
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जिस सामाजिक व्याधि के अस्तित्व को भी स्वीकार करने में रूसी समाजवादी सभ्यता के समर्थक उस समय मानसिक रूप से तैयार भी नहीं थे, आज का नव उदारवादी बुद्धिजीवी वर्ग उसे आर्थिक उन्नति की एक अनिवार्य शर्त या कीमत मानने में जरा भी संकोच या क्लेश महसूस नहीं करता।
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एक भारत है जिसमें अशिक्षा, अज्ञानता, गरीबी, अतार्किकता और इन सबसे पैदा हुआ मनोविकार सामाजिक व्याधि का भयंकर स्वरुप ले रहा है और दूसरी और उन्मुक्ति की बयार के तहत नारि-स्वतन्त्रता से उद्भूत तर्क यहाँ तक आ गया है कि कम कपडे पहनने से अगर कामुकता बढ़ती है तो वह देखने वाले का दोष है.